भोपाल के केरवा डैम क्षेत्र में पिछले कुछ महीनों से चल रही अवैध मलबा और मिट्टी की डंपिंग पर अब राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने सख्त रुख अपनाया है। एनजीटी ने 21 जुलाई 2025 को स्पष्ट निर्देश जारी किए हैं कि एफटीएल यानी फुल टैंक लेवल क्षेत्र में डाला गया सारा मलबा तत्काल हटाया जाए। साथ ही, इसकी लागत उन लोगों से वसूली जाए जिन्होंने यह गैरकानूनी काम किया है। यह पूरा मामला अभी भी एनजीटी की केंद्रीय पीठ, भोपाल के समक्ष विचाराधीन है। 

भोपाल मास्टर प्लान 2005 के अनुसार, केरवा और कलियासोत जैसे जलाशयों के चारों ओर 33 मीटर का क्षेत्र हरित पट्टी के रूप में सुरक्षित रहना चाहिए। लेकिन इस क्षेत्र में हजारों डंपरों के माध्यम से कोपरा, मुर्रम और काली मिट्टी डालकर जमीन को समतल किया गया है। इसका मकसद अवैध प्लॉटिंग करना बताया जा रहा है।

एनजीटी ने इस गंभीर मामले पर संज्ञान लेते हुए 21 अप्रैल 2025 को एक संयुक्त समिति गठित की थी। इस समिति में भोपाल कलेक्टर कार्यालय, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीपीसीबी) और राज्य वेटलैंड प्राधिकरण के अधिकारी शामिल थे। समिति ने 14 जुलाई 2025 को स्थल निरीक्षण किया और पाया कि एफटीएल (फूल टैंक लेवल) क्षेत्र के भीतर करीब 10 फीट तक मिट्टी और मलबा डंप किया गया है।

हालांकि निरीक्षण के दौरान डंपिंग रुकी हुई पाई गई, लेकिन वहां पहले से डाले गए मलबे के स्पष्ट प्रमाण मौजूद थे। इससे यह पुष्टि हुई कि इस संवेदनशील आर्द्रभूमि क्षेत्र में बड़े पैमाने पर अवैध गतिविधियां हो चुकी हैं, जो जलाशय की पारिस्थितिकी और जल संग्रहण क्षमता दोनों को नुकसान पहुंचा रही हैं।

एनजीटी ने अपने 21 जुलाई के आदेश में यह भी निर्देश दिया है कि भोपाल नगर निगम, जिला कलेक्टर और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड मिलकर उन लोगों की पहचान करें जिन्होंने यह अवैध कार्य किया है। इन लोगों के खिलाफ अभियोजन चलाया जाए और पर्यावरणीय हर्जाना भी तय किया जाए। 

एनजीटी के हालिया आदेश में याचिकाकर्ता को निर्देश दिया गया है कि वे भी उन लोगों की जानकारी प्रस्तुत करें जो इस डंपिंग के लिए जिम्मेदार हैं। अधिकरण ने यह भी दोहराया कि भोज वेटलैंड, जिसमें केरवा डैम भी शामिल है, एक रामसर घोषित संवेदनशील आर्द्रभूमि क्षेत्र है। इसकी सुरक्षा करना राज्य सरकार का संवैधानिक कर्तव्य है।

एनजीटी ने इस मामले की अगली सुनवाई 11 अगस्त 2025 को तय की है। तब तक सभी संबंधित अधिकारियों को कार्रवाई की रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी। इस रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया जाए कि मलबा हटाने, दोषियों की पहचान और कानूनी कार्रवाई को लेकर अब तक क्या कदम उठाए गए हैं।

स्थानीय पर्यावरण कार्यकर्ता राशिद नूर खान ने इस मामले के याचिकाकर्ता रहे हैं। उन्होंने सबसे पहले अप्रैल में प्रशासन से शिकायत की थी कि केरवा डैम के एफटीएल क्षेत्र में हजारों डंपरों से मलबा डाला जा रहा है, जिससे जलाशय का प्राकृतिक स्वरूप बदल रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि डैम के भीतर पक्के घरों और निर्माण गतिविधियों की तैयारी की जा रही है। इस मामले के याचिकाकर्ता राशिद नूर खान ने ग्राउंड रिपोर्ट से कहा,

भोपाल में सबसे बड़ी समस्या ये है कि तालाबों की ज़मीन महंगी हो गई है, और रसूखदार लोग नियम तोड़कर उस पर कब्जा कर लेते हैं। लेकिन उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती है। जब तक इन पर सीधी और सख़्त कार्रवाई नहीं होगी, तब तक सारी बातें सिर्फ खाना-पूर्ति ही रहेंगी।

ग्राउंड रिपोर्ट ने इस मामले को विस्तार से कवर किया था। ग्राउंड रिपोर्ट की कवरेज के बाद एनजीटी ने अपने 21 अप्रैल के फैसले में निरिक्षण के आदेश दिए थे। अब इस मामले में एनजीटी का एक और महत्वपूर्ण आदेश आया है। राशिद नूर खान ने इस पर कहा कि,

ऑर्डर होना और उसका पालन होने में बहुत फर्क है। ऑर्डर हम बहुत समय से देखते आ रहे हैं लेकिन फिर भी जमीन पर स्थिति सुधरती नहीं नजर आ रही है। अगर इस मामले में सख्त कार्रवाई नहीं हुई तो चाहे मुझे सुप्रीम कोर्ट जाना पड़े, मैं जाऊंगा। 

इस मामले की अगली सुनवाई अब 11 अगस्त 2025 को तय की गई है। अब अगली सुनवाई तक तक सभी जिम्मेदार अधिकारियों को ‘एक्शन टेकन रिपोर्ट’ प्रस्तुत करने का आदेश दिया गया है। अब जब एनजीटी ने सख्ती दिखाई है, तो पर्यावरण कार्यकर्ताओं को उम्मीद है कि इस संवेदनशील क्षेत्र को और नुकसान से बचाया जा सकेगा। 

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